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विद्यालय विकास यात्रा
सत्र 1998 – 99 में विद्यालय प्रारम्भ हुआ | सर्व प्रथम कक्षा षष्ठ में 30 छात्राओं का प्रवेश किराये के भवन में हुआ | प्रबंध समिति का गठन हुआ जिसमे श्रीमती कृष्णा माहेश्वरी जी प्रबंधक, श्रीमती किरन विश्वकर्मा अध्यक्ष , श्रीमती पदमा अग्रवाल जी उपप्रबंधक, श्रीमती रश्मि गुप्ता जी उपाध्यक्ष, श्रीमती स्वर्ण लता सांवल कोषाध्यक्ष बनी | उन्नति करते हुए नवम दशम कक्षाएं चलते हुए बालिकाओं का आंतरिक एवं बाह्य स्तर मजबूत बनाते का प्रयत्न सत्र 2011 -१२ में महिला महोत्सव मेला नगर की महिलाओं की जागरूक करने के लिए आयोजित किया जिसकी सयोजिका श्रीमती स्वर्ण लता सांवल जी थी | छात्राएं प्रतिवर्ष राष्ट्रीय, राज्य एवं जनपद स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेकर स्थान प्राप्त करके विद्यालय का गौरव बढाती है |
प्रधानाचार्य श्रीमती मंजू वैश्य जी एवं समस्त समिति के नेतृत्व में विद्यालय दिनों दिन प्रगति पथ पर रहा जिसका परिणाम आज मातृशक्ति के अथक प्रयासों से परलक्षित हो रहा है |
बाल मेला एवं शैक्षिक विज्ञान प्रदर्शनी
स्वास्थ्य परीक्षण
परीक्षा एवं मूल्यांकन
छात्राओं के ज्ञान के मूल्यांकन हेतु तीन मासिक परीक्षाऐं एवं अर्द्धवार्षिक एवं वार्षिक परीक्षा सम्पादित की जाती है | जिसमें बहुविकल्पीय, अतिलघुउत्तरीय एवं लघुउत्तरीय प्रश्नों का समावेश किया जाता है | जिनका मूल्यांकन छात्राओं की प्रगति से सम्बन्धित जानकारी छात्राओं के साथ-साथ अभिभावकों को भी दी जाती है। इस सत्र में मासिक परीक्षायें तथा मूल्यांकन कर परीक्षाफल उपलब्ध कराना |
अभिभावक सम्मेलन
विद्यालय एवं परिवार एक साथ बैठकर छात्राओं की प्रगति के सम्बन्ध में विचार- विमर्श कर सके, इसके लिए वर्ष में दो बार अभिभावक सम्मेलन की व्यवस्था रहती है |
अभिभावक सम्पर्क
विद्यालय द्वारा छात्राओं से सम्बन्धित गतिविधियों की जानकारी हेतु वर्ष में दो बार अभिभावक सम्पर्क की व्यवस्था विद्यालय द्वारा रहती है।
दादी-नानी सम्मेलन
छात्राओं का विकास में जितना महत्व माता-पिता का है उससे कहीं अधिक दादा-दादी का भी है विद्यालय छात्राओं के सर्वागीण विकास के लिये वर्ष में एक बार दादी-नानी सम्मेलन का भी आयोजन किया जाता है। जिससे छात्राओं की विषय वस्तु का पूरा ज्ञान विद्यालय परिवार को हो सके।
संस्कृति ज्ञान परीक्षा
छात्राओं के सर्वागीण विकास एवं महापुरुषों से सम्बन्धित तथा अपने भारतीय मान बिन्दुओं एवं गौरव से छात्रा परिचित हो सके इसके लिए संस्कृति ज्ञान परीक्षा की व्यवस्था रहती है। जो कि अखिल भारतीय स्तर पर करायी जाती है।
वेश
विद्यालय वेश अनुशासन का एक अंग है, अतः बिना वेश विद्यालय में प्रवेश वर्जित है। विद्याल निर्धारित वेश है जिसमें प्रत्येक दिन छात्रा को विद्यालय वेश में विद्यालय आना रहता है |
वन्दना
छात्राओं को आध्यात्मिक ज्ञान की अनुभूति हो सके तथा उसके मन की एकाग्रता केन्द्रित हो सके इस|निमित्त आध्यात्मिक चेतना के केन्द्र बिन्दु विशाल वन्दना कक्ष के जिसमें महापुरुषों के चित्र सुशोभित हैं। माँ सरस्वती की वन्दना छात्र ध्यान मुद्रा में बैठकर सम्पादित करते हैं। वन्दना के पूर्व अलग- अलग दिवस में | रामचरित मानस की चौपाई, गीता के श्लोक, आरती, हनुमान चालीसा, सामान्य ज्ञान की बातें, समाचार दर्शन सम्पन्न होते हैं।